लेखनी कविता - गज़ल

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गज़ल झूठी बुलंदियों का धुँआ पार कर के आ क़द नापना है मेरा तो छत से उतर के आ इस पार मुंतज़िर हैं तेरी खुश-नसीबियाँ लेकिन ये शर्त है कि नदी ...

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